हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, निम्नलिखित परंपरा "इरशादुल-कुलूब" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال الامام الحسن علیه السلام:
«أَهْلُ الْمَسْجِدِ زُوّارُ اللَّهِ، وَ حَقٌّ عَلَى الْمَزُورِ أَنْ يُكْرِمَ زَائِرَهُ»
इमाम हसन मुज्तबा (अ) ने फ़रमाया:
वास्तव में, मस्जिद में आने वाले लोग अल्लाह के मेहमान और आगंतुक हैं, और मेजबान और आतिथ्यकर्ता का कर्तव्य है कि वह अपने मेहमान और आगंतुक का सम्मान करे।
(व्याख्या: यह हदीस मस्जिद की महानता और उसमें आने वालों के सम्मान को प्रोत्साहित करती है। अल्लाह तआला ने मस्जिद में आने वालों को अपना मेहमान घोषित किया है और मेज़बान पर मेहमान का सम्मान करना अनिवार्य है।)
इरशादुल कुलूब, पेज 72
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